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शास्त्रों में मातृगौरव (मातृ दिवस) Mothers Day

                                                            शास्त्रों में मातृगौरव श्रीराम! संसार में जितने भी वन्द्य गुरुजन हैं उन सबकी अपेक्षा माता परमगुरु होनेसे अधिक वन्दनीया होती हैं। शास्त्रों में तो यहाँ तक लिखा है कि माताकी गरिमा हजार पिता से भी अधिक है।सारे जगत् में वन्दनीय सन्यासी को भी माताकी वन्दना प्रयत्न पूर्वक करनी चाहिए।-- गुरोर्हि_वचनम्प्राहुर्धर्म्यं_धर्मज्ञसत्तम। गुररूणां_चैव_सर्वेषां_माता_परमों_गुरुः। * महा.भा. आदि प. १९५--१६*-- हे धर्मज्ञ सत्तम! गुरुजनों की आज्ञा का पालन धर्म्य होता है,किन्तु माता सभी गुरुओंमें परम गुरु होती है। सहस्रन्तुपितॄन्मातागौरवेणातिरिच्यते । सर्ववन्द्येन_यतिना_प्रसूर्वन्द्या_प्रयत्नतः। *स्कन्द पु.काशीख.११-५०*। माता शिशुको गर्भमें धारण करने उत्पन्न करने में तथा पालन करने में अत्यधिक कष्ट उठाती है। शिशु के लिए अपनी रूचि और आहार विहार का भी त्याग करती है। इसी लिए माता का गौरव अधिक कहा गया है। पिता...