कारक प्रकरण (Karak Prakaran)

                                                    कारक प्रकरण



सूत्र:- क्रियान्वयि_कारकं।

व्याख्या:- क्रिया के साथ जिसका प्रत्यक्ष संबंध हो, उसे कारक कहते हैं।

यथा:-      राम संस्कृत पढता है ।

               रामः संस्कृतम् पठति ।

(यहां राम और संस्कृत कारक है


संस्कृत भाषा में छः कारक होते हैं ।
१) कर्ता २) कर्म ३) करण ४) सम्प्रदान ५) अपादान ६) अधिकरण।

तथ्य:- सम्बन्ध और सम्बोधन कारक नहीं है, इसे मात्र विभक्ति माना जाता है ।

विभक्ति:

सूत्र
:- संख्याकारकबोधयित्री_विभक्ति:।

व्याख्या
:- जो कारक और वचन विशेष का बोध कराये ,उसे विभक्ति कहते है।

दूसरे शब्दों में, जिसके द्वारा कारकों और संख्याओं को विभक्त किया जाता है उसे विभक्ति कहते हैं।


विभक्ति के प्रकार :
विभक्तियाँ सात हैं - १.प्रथमा  २.द्वितीया ३.तृतीया ४.चतुर्थी ५.पंचमी ६.षष्ठी ७.सप्तमी ।

कारक के नाम                       चिह्न                               विभक्ति

   कर्ता                                    ने                                    प्रथमा

   कर्म                                    को                                 द्वितीया

   करण                                 से,【द्वारा】                  तृतीया

  सम्प्रदान                            को, के लिए                      चतुर्थी

  अपादान                             से ,【अलग】                 पंचमी

  सम्बन्ध                            का,के,की,रा,रे,री                षष्ठी

अधिकरण                           में ,पर                               सप्तमी


(१.) कर्ता कारक (Nominative Case)

(१.) सूत्र:- क्रियासम्पादकः कर्ता।

व्याख्या:- क्रिया का सम्पादन करने वाले को कर्ता कारक कहते हैं। कर्ता कारक का चिह्न  "ने " है।

यथा:-  वह   किताब पढता है।  सः पुस्तकम् पठति।

           राधा गीत गाती है । राधा गीतं गायति।

यहाँ  सः और राधा कर्ता कारक है ।

नियम :- क्रिया सदैव कर्त्ता के पुरुष व वचन के अनुसार होती है ।

(२.) सूत्र:-  कर्तरि प्रथमा ।

व्याख्या:- कर्ता कारक में प्रथमा विभक्ति होती है।

यथा:- राम स्कूल जाता है। रामः विद्यालयम् गच्छति।

यहाँ रामः में प्रथमा विभक्ति है ,क्योंकि राम कर्ता कारक है ।

(३) सूत्र:- प्रातिपदिकार्थमात्रे प्रथमा।

व्याख्या:- किसी भी शब्द का अर्थ-मात्र प्रकट करने के लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।

यथा :- जनः (आदमी), लोकः (संसार), फलम् (फल), काकः (कौआ) आदि।

(४) सूत्र :- उक्ते कर्तरि प्रथमा ।

व्याख्या :- कर्तृवाच्य (Active Voice)में जंहाँ कर्ता पद "कहा गया" रहता है वहाँ उसमे प्रथमा विभक्ति होती है।

यथा:- राम घर जाता है । रामः गृहम् गच्छति।

(५.) सूत्र:- सम्बोधने च ।

व्याख्या :- सम्बोधन में भी प्रथमा विभक्ति होती है।

यथा :- हे राम ! यहाँ आओ। हे_राम! अत्र आगच्छ ।

(६) सूत्र:-अव्यययोगे प्रथमा ।

व्याख्या :- अव्यय के योग में प्रथमा विभक्ति होती है ।

यथा :- मोहन कहाँ  है? मोहनः कुत्र अस्ति?

यहाँ मोहन कर्ता नहीं है फिर भी कुत्र अव्यय होने के कारण मोहन में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग हुआ ।

(७) सूत्र:-उक्ते कर्मणि प्रथमा।

व्याख्या:- कर्मवाच्य (Passive Voice) में जहाँ कर्ता पद "कहा गया" रहता है , वहाँ उसमे प्रथमा विभक्ति होती है।

यथा :- (क)राम के द्वारा घर जाया जाता है। रामेण गृहम् गम्यते। (ख) तुझसे साधु की सेवा की जाती है। त्वया साधुः सेव्यते। आदि।

                
२. कर्म कारक (Objective Case)

(१.) सूत्र:- कर्तुरीप्सिततमम् कर्मः।


व्याख्या:- कर्ता की अत्यंत इच्छा जिस काम को करने में हो उसे कर्म कारक कहते हैं।

          या, क्रिया का फल जिस पर पड़े, उसे कर्म कारक कहते हैं।

                कर्म कारक का चिह्न "को" है।

यथा :- रमेश फल खाता है । रमेशः फलम् खादति।

           मोहन दूध पिता है । मोहनः दुग्धं पिबति।

यहाँ फलम् और दुग्धं  कर्म कारक है क्योंकि फल भी इसीपर पर रहा है और कर्ता की भी अत्यन्त इच्छा भी इसी काम को करने में है।

(२.) सूत्र:- कर्मणि द्वितीया।

व्याख्या :- कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है।

यथा:- गीता चन्द्रमा को देखती है। गीता चंद्रम् पश्यति।

          मदन चिट्ठी लिखता था । मदनः पत्रं लिखति।

यहाँ चंद्रम् और पत्रं में द्वितीया विभक्ति है,क्योंकि ये दोनों कर्म कारक हैं।

(३.) सूत्र:-क्रियाविशेषणे द्वितीया।

व्याख्या:- क्रिया की विशेषता बताने वाले  अर्थात् क्रियाविशेषण (Adverb) में द्वितिया विभक्ति होती है।



क्रियाविशेषण- तीव्रम् , मन्दम् ,मधुरं आदि।

यथा:- (क) बादल धीरे-धीरे गरजते है। मेघा: मन्दम्-मन्दम् गर्जन्ति। (ख) प्रकाश मधुर गाता है। प्रकाशः मधुरं गायति।(ग)वह जल्दी जाता है। सः शीघ्रं गच्छति।आदि

(४.) सूत्र:-अभितः परितः सर्वतः समया निकषा प्रति संयोगेऽपि द्वितीया।

व्याख्या :-उभयतः,अभितः(दोनों ओर), परितः (चारों ओर), सर्वतः (सभी ओर), समया( समीप), निकषा (निकट), प्रति (की ओर) के योग में द्वितिया विभक्ति होती है।

यथा:-

(क) गाँव के दोनों ओर पर्वत हैं। ग्रामम् अभितः पर्वताः सन्ति ।

(ख) विद्यालय के चारों ओर नदी है। विद्यालयम् परितः नदी अस्ति।

(ग) घर के सब ओर वृक्ष हैं।

गृहम् सर्वतः वृक्षाः सन्ति।

(घ) तुम्हारे घर के समीप  मंदिर है। गृहम् समया मन्दिरं अस्ति।

(ङ) मंदिर की ओर चलो। मन्दिरं प्रति गच्छ। आदि

(५.) सूत्र:- कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे द्वितिया।

व्याख्या
:- कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में यदि क्रिया का अतिशय लगाव या व्याप्ति हो तो द्वितिया विभक्ति होती है।

यथा
:- कोस भर नदी टेढ़ी है। क्रोशम् कुटिला नदी ।

        मैं महीने भर  व्याकरण पढ़ा। अहम् मासं व्याकरणं अपठम्।

(६. ) सूत्र:- विना योगे द्वितिया ।

व्याख्या:- "विना" के योग में द्वितिया विभक्ति होती है।

यथा :-(क) परिश्रम के बिना विद्या नहीं होती ।

                परिश्रमम् विना विद्या न भवति ।

          (ख) धन के बिना लाभ नहीं होता।

                 धनम् विना लाभं न भवति । आदि।                   
                            

३. करण कारक (Instrumental Case)

(१.) सूत्र:-साधकतमं करणम्

व्याख्या:- क्रिया को करने में जो अत्यंत सहायक हो, उसे करण कारक कहते हैं।

            करण कारक का चिह्न "से (द्वारा)" है।

यथा:- (क.)राम ने रावण को तीर से मारे।

          रामः रावणं वाणेन  हतवान्।

          (ख).वह मुख से बोलता है। सः मुखेन वदति।

यहाँ मारने में "तीर" और बोलने में "मुख" सहायक है, इसलिए दोनों में करण कारक होगा।

(२.) सूत्र:- करणे तृतीया।

व्याख्या:- करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है।

यथा:-(अ). मैं कलम से लिखता हूँ। अहम् कलमेन लिखामि।

         (ब.) राजा रथ से आते हैं । राजा रथेन आगच्छति।

यहाँ "कलमेन" और "रथेन" करण कारक है इसलिए दोनों में तृतीया विभक्ति होई।

(३.) सूत्र:- सहार्थे तृतीया।

व्याख्या:- "सह (साथ)" शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। (सह, साकम्, सार्धम् समम्=साथ)

यथा:- (a.)राम के साथ सीता वन गई।

         रामेण सह सीता वनम् अगच्छत।

         (b.) रमेश मित्र के साथ खेलता है ।

          रमेशः मित्रेन् सह क्रीडति।

        (c.) मैं सीता के साथ जाता हूँ।

         अहम् *सीतया* सार्धम् गच्छामि। आदि

(४.) सूत्र:- अपवर्गे तृतीया।

व्याख्या:- अपवर्ग अर्थात् कार्य समाप्ति या फल प्राप्ति के अर्थ में कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।

यथा:- (अ)वह एक वर्ष में व्याकरण पढ़ लिया।

          सः वर्षेण व्याकरणं अपठत्। (कालवाचक)

          (ब) मैंने तीन कोस में कहानी कह दी।

             अहम् क्रोशत्रयेण कथां अकथयम्।

(५.) सूत्र:-हेतौ तृतीया।

व्याख्या:- हेतु या कारण का अर्थ होने पर तृतीया विभक्ति होती है।

यथा:- वह कष्ट से रोता है। सः कष्टेन रोदिति।

        लड़का हर्ष से हँसता है। बालकः हर्षेण हसति।

(६.) सूत्र:-ऊनवारणप्रायोजनार्तेषु तृतीया।

व्याख्या:- ऊन(हीन) ,वारण (निषेध) और प्रयोजनार्थक  शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।

यथा:- 1. एक कम - एकेन हीनः।

         2. कलह मत करो- कलहेन अलम्।

         3. राम के समान - रामेण तुल्यः।

         4. कृष्ण के समान - कृष्णेन सदृशः। आदि

(७.) सूत्र:-येनाङ्गविकारः।

व्याख्या:-जिस अंगवाचक शब्दों से विकार का ज्ञान प्राप्त हो , उस विकार रूपी अंग में तृतीया विभक्ति होती है।

यथा:- मोहन पैर से लाँगड़ा है। मोहनः पादेन खञ्जः।

       सीता पीठ से कुबड़ी है । सीता पृष्ठेन कुब्जा ।

       वह आँख से अँधा है। सः नयनाभ्याम् अंधः।

       सुरेश कान से बहरा है। सुरेशः कर्णाभ्याम् बधिरः।

(८.) सूत्र:-इत्थंभूत लक्षणे तृतीया।

व्याख्या:- जिस लक्षण विशेष से कोई वस्तु या व्यक्ति पहचानी जाती हो , उस लक्षणविशेष वाले शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।

यथा:-     1.वह जटाओं से तपस्वी मालुम पड़ता है।

             सः जटाभिः तापसः प्रतीयते।

             2.सोहन चन्दन से ब्राह्माण मालुम पड़ता है।

             सोहनः चंदनेन ब्राह्मणः प्रतीयते।

(९.) सूत्र:-अनुक्ते कर्तरि तृतीया।

व्याख्या:- कर्मवाच्य और भाववाच्य में कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है।

यथा:-(अ) राम के द्वारा रावण मारा गया।

          रामेण रावणः हतः।

        ( ब) मेरे द्वारा हंसा गया।

            मया हस्यते।


४. सम्प्रदान कारक ( Dative_Case )

(१.) सूत्र:- कर्मणा यमभिप्रैती स सम्प्रदानं।

व्याख्या:- जिसके लिए कोई क्रिया (काम )की जाती है, उसे सम्प्रदान कारक कहते है।

दूसरे शब्दों में जिसके लिए कुछ किया जाय या जिसको कुछ दिया जाय, इसका बोध कराने वाले शब्द के रूप को सम्प्रदान कारक कहते है।

          इसकी विभक्ति चिह्न'को' और 'के लिए' है।

यथा
:- (क).माता बालक को लड्डू देती है।

                माता बालकाय मोदकम् ददाति ।

          (ख).राजा ब्राह्मण को वस्त्र देते हैं।

                  राजा  विप्राय वस्त्रं ददाति।

(२.)  सूत्र:-सम्प्रदाने चतुर्थी ।

ति ।

         3. मैं 10 बजे स्कुल जाता हूँ ।

             अहम् दशवादने विद्यालयं गच्छामि।

       4. राम सुबह मे 5 बजे उठता है।

           रामः प्रातःकाले पंचवादने उतिष्ठति।

(३.) सूत्र:- निर्धारणे सप्तमी।

व्याख्या:- अधिक वस्तुओं या व्यक्तियों में किसी एक की विशेषता बताने पर , उस एक में सप्तमी विभक्ति होती है।

यथा:- 1. कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है।

              कविषु कालिदासः श्रेष्ठः ।

           2.  जीवों में मानवलोग  श्रेष्ठ हैं।

                 जीवेषु मानवाः श्रेष्ठा: ।

          3.  फूलों में कमल श्रेष्ठ  है।

                  पुष्पेषु कमलं श्रेष्ठम् ।

          4. ऋषियों में वाल्मीकि श्रेष्ठ हैं ।

              ऋषिषु वाल्मीकिः श्रेष्ठः।

(४.) सूत्र:-कुशलनिपुणप्रविनपण्डितश्च योगे सप्तमी।

  व्याख्या:- जिसमें कार्य में  कोई व्यक्ति कुशल , निपुण ,प्रवीण , पंडित हो उसमें सप्तमी विभक्ति होती है।

यथा:- 1.मेरा दोस्त गाड़ी चलाने में कुशल है।

         मम मित्रः वाहनचालने कुशलः।

         2.कृष्ण वंशी बजाने में प्रवीण हैं ।

         श्रीकृष्णः वंशीवादने प्रवीणः।

         3. अर्जुन धनुर्विद्या में निपुण है।

          अर्जुनः धनुर्विद्यायाम् निपुणः।

        4. मेरी पत्नी खाना बनाने में कुशल है।

           मम भार्या भोजनस्य पाचने  कुशला ।

        5. मोहन शास्त्र का  पंडित है।

          मोहनः शस्त्रे पण्डितः अस्ति ।

(५.) सूत्र:-अभिलाषानुरागस्नेहासक्ति योगे सप्तमी।

व्याख्या:- जिसमें मनुष्य की अभिलाषा ,अनुराग, स्नेह या आसक्ति हो उसमें सप्तमी विभक्ति होती हैं।

यथा:- 1.बालकस्य आम्रफले अभिलाषः।

          2.मम संस्कृत आसक्तिः ।

          3.धेनो: वत्से स्नेहः ।

          4.प्रजानां  राज्ञि अनुरागः।  आदि।

५. सम्बन्ध कारक(Genitive Case)

(१.) सूत्र:-षष्ठी शेषे ।

व्याख्या:- कारक और शब्दों को छोड़कर अन्य सम्बन्ध "शेष" कहलाते हैं।

           सम्बन्ध कारक में षष्ठी विभक्ति होती है।

यथा:- 1.राजा का महल - नृपस्य भवनं ।

          2. राम का पुत्र - रामस्य पुत्रः ।

(२.) सूत्र:- षष्ठी हेतु प्रयोगे।

व्याख्या:- "हेतु" शब्द का प्रयोग होने पर कारणवाची शब्द और "हेतु" शब्द दोनों में ही षष्ठी विभक्ति होती है ।

यथा:-  (१.) वह अन्न के लिए रहता है। सः अन्नस्य हेतोः वसति।

          (२.) "अल्पस्यहेतोर्बहु हातुमिच्छन् ,

           विचारमुढ: प्रतिभासि में त्वम्।"

         (छोटी सी चीज के लिए बहुत बड़ा त्याग कर रहे       हो ,मेरी समझ में तुम मुर्ख हो।)

(३.) सूत्र:- षष्ठी_ चानादरे।

व्याख्या:- जिसका अनादर करके कोई काम किया जाय उसमें षष्ठी विभक्ति और सप्तमी विभक्ति होती  है।

यथा:-  गुरोः पश्यत छात्रः कक्षतः बहिः अगच्छत्।

          रुदतः शिशो: माता बहिः अगच्छत्।


                                                     
 (४.) सूत्र:- निर्धारणे षष्ठी।

व्याख्या :- अनेक वस्तुओं अथवा व्यक्तियों  में जिसको श्रेष्ठ या विशेष बताया जाए उसमे षष्ठी विभक्ति होती है।

यथा:- १. बालकों में रवि श्रेष्ठ है । बालकानाम् रवि श्रेष्ठ:।

         २ कवियों में कालिदास श्रेष्ठ हैं ।

             कविषु कालिदासः श्रेष्ठ: ।

          ३.फूलों में कमल श्रेष्ठ है । पुष्पानां श्रेष्ठं कमलं।

(५. ) सूत्र:- षष्ठ्यतसर्थम् प्रत्ययेन षष्ठी।

व्याख्या :- " तस्" प्रत्यायन्त शब्दों  (पुरतः ,पृष्ठतः, अग्रतः, उपरी, अधः,पूर्वतः, पश्चिमतः , दक्षिणतः ,वामतः ,अंतः  आदि) के योग में षष्ठी विभक्ति होती है।

यथा:- १.भारतस्य दक्षिणतः विवेकानन्दस्मारकः अस्ति।

         २. भारतस्य उत्तरतः हिमालयः विराजते ।

         ३. भूमेः अधः जलं अस्ति ।

         ४. सैनिकस्य वामतः नेता अस्ति।

         ५. पर्वतस्य पुरतः मेघा: गर्जन्ति।

        ६. फलस्य अंतः बिजानि सन्ति ।

(६. ) सूत्र:- कर्तृ कर्मणो: कृतिः।

व्याख्या:- कृदन्त शब्द के योग में कर्ता और कर्म में षष्ठी होती है।

यथा:- 1.कृष्णस्य कृतिः( कृष्ण का कार्य)

          2.वेदस्य अध्येता ( वेद पढ़नेवाला )।।

व्याख्या:- सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है।

यथा:- वह गरीबों को अन्न देता है।

         सः निर्धनेभ्यः अन्नम् ददाति ।

यहाँ गरीब के लिए क्रिया की जाती है और साथ हीं गरीब को अन्न भी दिया जा रहा है इसलिए यह सम्प्रदान कारक है और सम्प्रदान कारक होने के कारण "गरीब" में चतुर्थी विभक्ति हुआ ।

(३.) सूत्र:- रुच्यार्थानां प्रीयमाणः।

व्याख्या:-  "रुच्" (अच्छा लगना) धातु के योग में जिस व्यक्ति को कोई चीज अच्छी लगती हो , उस अच्छी लगने वाले वास्तु में चतुर्थी विभक्ति होती है।

यथा:- मुझे मिठाई अच्छी लगती है।

       मह्यम् मिष्ठानं रोचते ।

          गणेश को लड्डू पसंद है।

         गणेशाय मोदकम् रोचते ।

          हरि को भक्ति अच्छी लगती है।

       हरये भक्तिः रोचते।

(४.) सूत्र:- नमः स्वस्तिस्वाहास्वधाsलंवषट्_योगाच्च।

व्याख्या:- नमः(प्रणाम), स्वस्ति (कल्याण हो), स्वाहा ,स्वधा (समर्पित), अलम् (पर्याप्त), आदि के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।

यथा:- सरस्वती को प्रणाम । सरस्वत्यै नमः।

          शिव को नमस्कार । शिवाय नमः।

         लोगों का कल्याण हो । जनेभ्यः स्वस्ति।

         गणेश को समर्पित । गणेशाय स्वाहा ।

         पितरों को समर्पित । पितरेभ्यः स्वस्ति।

राम रावण के लिए पर्याप्त हैं। रामः रावणाय अलम्।

(५.) सूत्र:-  क्रुधद्रुहेर्ष्यासूयार्थानां यं प्रति कोपः।

व्याख्या:- क्रुध्, द्रुह्, ईर्ष्या,असूया अर्थवाची क्रियाओं के योग में जो इनका विषय होता है उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।

यथा:- 1.मालिक नौकर पर क्रोध करता है।

         स्वामी भृत्याय क्रुध्यति।

       2.  वेलोग रमेश से द्रोह करता है।

         ते रमेशाय द्रुह्यन्ति/ आसूयन्ति/ इर्ष्यन्ति।

६. अपादान कारक ( Ablative Case)

(१.) सूत्र:- ध्रुवमपायेऽपादानम्।

व्याख्या:- जिस निश्चित स्थान से कोई वस्तु या व्यक्ति अलग होती है, उस निश्चित स्थान को अपादान कारक कहते हैं।

        अपादान कारक का विभक्ति चिह्न  "से ( अलग)" होता है।

यथा :- 1.वह घर से आता है।  सः गृहात् आगच्छति ।

2.पेड़ से पत्ते गिरते हैं। वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।

यहाँ "गृहात्"और "वृक्षात्" अपादान कारक है ,क्योंकि ये दोनों निश्चित स्थान है जिससे क्रमशः व्यक्ति और वस्तु अलग हो रही है।

(२.) सूत्र:- अपादाने पंचमी।

व्याख्या:- अपादान कारक में पंचमी विभक्ति होती है।

यथा:- क्षेत्रपाल खेत से गाय हाँकता है।

क्षेत्रपालः क्षेत्रात् गाः वारयति।

(३.) सूत्र:-बहिर्योगे पंचमी ।

व्याख्या:- बहिः (बाहर) अव्यय के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है।

यथा:-1. गृहात् बहिः वाटिका अस्ति ।घर के बहार बगीचा है। ,

2.सः गृहात् बहिर् गतः।

वह घर से बाहर गया। आदि।

(४.) सूत्र:- ऋते योगे पंचमी।

व्याख्या:-  ऋते के योग में भी पंचमी विभक्ति होती है।

यथा:-

1. ज्ञानात् ऋते न मुक्तिः । ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं।

2.कृष्णात् ऋते न सुखम् । कृष्ण के बिना सुख नहीं।

(५) सूत्र:- भीत्रार्थानां भयहेतुः।

व्याख्या:- भी( डरना) और त्रा (बचाना) धातु के योग में जिससे भय या रक्षा की जाए ,उसमे पंचमी विभक्ति होती है।

यथा:- 1.मोहन साँप से डरता है। मोहनः *सर्पात्* विभेति।

2.गुरु शिष्य को पाप से बचाते हैं। गुरु शिष्यं *पापात्* त्रायते।

(६. ) सूत्र:-अख्यातोपयोगे पंचमी।

व्याख्या:- जिससे नियमपूर्वक विद्या सीखी जाती है , उसमे पंचमी विभक्ति होती है।

यथा:-1. वह मुझसे व्याकरण पढता है। सः मत् व्याकरणं अधीते।

2.वह राम से कथा सुनता है। सः रामात् कथां शृणोति।

(७.) सूत्र:- भुवः प्रभवः च।

व्याख्या:- "भू" धातु के योग में जंहाँ से कोई चीज उत्पन्न होती है, उसमें पंचमी विभक्ति होती है।

यथा:- गंगा हिमालय से निकलती है।

गंगा हिमालयात् प्रभवति।

(८.) सूत्र:- अपेक्षार्थे पञ्चमी।

व्याख्या:- तुलना में  जिसे श्रेष्ठ बनाया जाए उसमे  पंचमी विभक्ति होती है।

यथा:- 1.माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।

    जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसि।

   2.विद्या धन से  बढ़कर है।विद्या *धनात्* गारीयसि।

(९.) सूत्र:- पर पूर्वयोगे पंचमी।

व्याख्या:-परः(बाद में होने वाला) तथा पूर्व: (पहले होने वाला) के योग में पंचमी विभक्ति होती है।

यथा:- चैत्रः *वैशाखात्* पूर्व:। वैशाखः *चैत्रात्* परः। आदि।

७. अधिकरण कारक ( Locative_Case)

(१.) सुत्र:-आधारोऽधिकरणः

व्याख्या:- क्रिया का जो आधार  हो उसे अधिकरण कारक कहते हैं।

यथा:- 3.वह भूमि पर सोता है। सः भूमौ शेते।

         2.लड़के विद्यालय में पढ़ते हैं।

            बालकाः विद्यालये पठन्ति ।

         3. मैं नदी में तैरता हूँ । अहम् नद्याम् तरामि।

(२.)  सूत्र:- अधिकरणे सप्तमी।

व्याख्या:- अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है।

यथा:-1. वेलोग गांव में रहते हैं। ते ग्रामे वसन्ति।

         2.सिंह वन में घूमता है। सिंहः वने भ्रम

Check out some Interested Posts:



Join us on: Telegram

टिप्पणियाँ

  1. isko thik kariye sir..........pura ulta pulta likha huaa hai.....

    जवाब देंहटाएं
  2. भाई चतुर्थी विभक्ति से सब उल्टा हो गया है आप वसे ठीक की जिये

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर है।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

संस्कृत भाषा में शुभकामनाएँ (Greetings in Sanskrit Language)

संस्कृत धातुगण (Sanskrit Dhatugana)