गुरु शिष्य वार्तालाप ( संस्कृत वार्तालाप)

                                                                          गुरु शिष्य वार्तालाप 

भो शिष्य उत्तिष्ठ प्रातःकालो जातः।

 ~ हे शिष्य ! उठो, सवेरा हुआ। 

उत्तिष्ठामि।

 ~उठता हूँ । 

अन्ये सर्वे विद्यार्थिन उत्थिता न वा ?

 ~और सब विद्यार्थी उठे या नहीं ?

अधुना तु नोत्थिताः खलु

 ~अभी तो नहीं उठे हैं ।

तानपि सर्वानुत्थापयउन।

 ~सब को भी उठा दो।

सर्व उत्थापिताः

 ~सभी को उठा दिया ।

सम्प्रत्यस्माभिः किं कर्त्तव्यम् ?

 ~इस समय हमको क्या करना चाहिये

आवश्यकं शौचादिकं कृत्वा सन्ध्यावन्दनम् ।

 ~आवश्यक शरीरशुद्धि करके सन्ध्योपासना ।

आवश्यकं कृत्वा सन्ध्योपासिता‍ऽतः परमस्माभिः किं करणीयम् ? ।

 ~आवश्यक कर्म करके सन्ध्योपासन कर लिया ।


अग्निहोत्रं विधाय पठत ।

 ~अग्निहोत्र करके पढ़ो ।

पूर्वं किं पठनीयम ?

 ~पहले क्या पढ़ना चाहिये ?

वर्णोच्चारणशिक्षामधीध्वम्।

 ~वर्णोच्चारणशिक्षा को पढ़ो ।

पश्चात्किमध्येतव्यम् ?

 ~फिर क्या पढ़ना चाहिये ?

किंचित्संस्कृतोक्तिबोधः क्रियताम् । 

 ~कुछ संस्कृत बोलने का ज्ञान किया जाय ।

पुनः किमभ्यसनीयम् ?

 ~फिर किसका अभ्यास करना चाहिये ?

यथायोग्यव्यवहारानुष्ठानाय प्रयुतध्वम् ।

 ~यथोचित व्यवहार करने के लिये प्रयत्न करो । 

कुतोऽनुचितव्यवहार कर्तुर्विद्यैव न जायते ।

 ~क्योंकि उल्टे व्यवहार करने वालो को विद्या प्राप्ति ही नही होती।

को विद्वान् भवितुर्महति ?

 ~कौन मनुष्य विद्वान् होने के योग्य होता है ? 

यः सदाचारी प्राज्ञः पुरुषार्थी भवेत् ।

 ~जो सत्याचरणशील, बुद्धिमान्, पुरुषार्थी हो । 

कीदृशादाचार्याधीत्य पण्डितो भवितुं शक्नोति ?

 ~किस प्रकार के आचार्य से पढ़ के पण्डित बना जा सकता है ? 

अनूचानतः ।

 ~पूर्ण विद्वान वक्ता से ।

अथ किमध्यापयिष्यते भवता ?

 ~अब आप इसके अनन्तर हमको क्या पढ़ाओगे ?

अष्टाध्यायी महाभाष्यम् । 

 अष्टाध्यायी और महाभाष्य ।किमनेन पठितेन भविष्यति ?

 ~इसके पढ़ने से क्या होगा ?

शब्दार्थसम्बन्धविज्ञानम् ।

 ~शब्द अर्थ और सम्बन्धों का यथार्थबोध ।


पुनः क्रमेण किं किमध्येतव्यम् ?

 ~फिर क्रम से क्या-क्या पढ़ना चाहिये ?

शिक्षाकल्पनिघण्टुनिरुक्तछन्दोज्योतिषाणि वेदानामङ्गानि मीमांसावैशेषिक न्याययोगसांख्य वेदान्तानि उपाङ्गानि आयुर्धनुर्गान्धर्वार्थान् उपवेदान् ऐतरेय शतपथसामगोपथ ब्राह्मणान्यधीत्य ऋग्यजुस्सामा‍ऽथर्ववेदान् पठत । 

 ~शिक्षा, कल्प, निघण्टु, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष वेदों के अंग । मीमांसा,  वैशेषिक, न्याय, योग, सांख्य और वेदान्त उपाङ्ग । आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद और अर्थवेद उपवेद । ऐतरेय, शतपथ, साम और गोपथ ब्राह्मण ग्रन्थों को पढ़के ऋग्वेद, यनुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को पढ़ो ।। 

एतत्सर्वं विदित्वा किं कार्य्यम् ?

 ~इन सबको जान के फिर क्या करना चाहिये ?

धर्मजिज्ञासा‍ऽनुष्ठाने एतेषामेवा‍ऽध्यापनं च।


 ~धर्म के जानने की इच्छा तथा उसका अनुष्ठान और इन्हीं को सर्वदा पढ़ाना।     

                         
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