संस्कृत धातुगण (Sanskrit Dhatugana)

।। श्रीहरिः शरणम् ।।

                                                व्याकरण अध्ययन (धातुगण) 
                                                  Vyakaran (Dhatu gana)

आज हम धातु के गणों के बारे में पढ़ेंगे संस्कृत में धातुगण 10(भ्वादि से चुरादि तक) होते है, नीचे इन धातुओं के कुछ उदाहरण है:-
In Sanskrit There are 10 gana (Parts) of Dhatu (from भ्वादि to चुरादि)। Below there are few examples based on these gana:-


१. भ्वादि = भवति, खादति, पठति।

२. अदादि = अत्ति, वक्ति, हन्ति 

३. जुहोत्यादि = जुहोति, जहाति, बिभेति। 

४. दिवादि = दीव्यति, नृत्यति, विध्यति। 

५. स्वादि = सुनोति, आप्नोति, शृणोति।

६. तुदादि = तुदति, नुदति। 

७. रुधादि = रुणद्धि, भिनत्ति, छिनत्ति।

८. तनादि = तनोति, करोति।

९. क्र्यादि = क्रीणाति, जानाति, प्रीणाति।

१०. चुरादि = चोरयति, स्पृहयति, गणयति।

व्याकरण-अध्ययन धातुगण-२
(Vyakaran DhatuGana-2)

जैसा कि आपको भान है भ्वादि से चुरादि तक 10 गण होते हैं। इन गणों को विकरणप्रत्यय के हिसाब से बाँटा गया है। 

विकरण प्रत्यय क्या होते है ?

विकरण प्रत्यय वे होते हैं, जो धातु और तिङ् (ति तः अन्ति) प्रत्यय के बीच में आते हैं। शप्, लुक्, श्यन् जैसे 10 विकरण है जो धातु और तिङ् के बीच में लगेंगे। 

भ्वादि सबसे प्रचलित गण है। भू पठ् भज् खेल् जैसे सारे धातु भ्वादिगण के अन्तर्गत हैं। भ्वादि शप्-विकरण है। भू और ति के बीचमें जो "अ" दिखता है, वह "शप्" का "अ" है। 

पठ्+शप्(अ)+ति = पठति। 
पठ्+अ+ति【इन प्रत्ययों में श् प् जैसे अक्षर अनुबन्ध कहलाते हैं, वे निकल जाते हैं और निरनुबन्ध-रूप (remainder "अ") बच जाता है।】

भज्+शप्(अ)+ति = भजति। ऐसे सब जगह बीच में "अ" लगेगा। 

जहाँ दीव्यति सिध्यति विध्यति जैसे रूपों में "य" दिखता है वह "श्यन्" का निरनुबन्ध है। 
विध्+य+ति = विध्यति। 

कुछ गण (तुदादि गण में) में "अ" लगता है लेकिन वह मात्र "श" है। प् बिना अनुबन्ध के केवल "श" विकरण होने का अर्थ कुछ व्याकरण-सम्बन्धी कार्यों का अभाव है और अनुबन्ध का कारण कुछ व्याकरणविषयक कार्यों का होना है। जो बादमें सीखेंगे। 
तुद्+अ+ति = तुदति। नुद्+अ+ति = नुदति।

ऐसे धीरे धीरे हम दस गण सीखेंगे।

पूर्व में आपने धातुगणो का परिचय, और उनको किस प्रकार बाँटा गया है इसके बारे में पढ़ा। अब हम इन गणों के उपयोग के बारे में पढ़ेंगे।

१. भ्वादि:- भवति, खादति, भजति, पठति।
(इनमें धातु के बाद शप् लगता है, फिर ति-आदि प्रत्यय आते हैं। शप् में "अ" बचता है = पठ्+अ+ति। वैसे ही - भज्+अ+ति = भजति)

२. अदादि:- अत्ति, वक्ति, हन्ति 
(इनमें धातु के बाद "लुक्" विकरण लगता है। लुक् एक प्रकार का लोप/अदर्शन है मतलब धातु के बाद लुक्/शून्य ही लगेगा। तो कोई आधान/addition न करके सीधा प्रत्यय जोड़ना है।) 
अद्+ति = अत्ति। वच्+ति=वक्ति। हन्+ति = हन्ति। अदादि में लुक्/अदर्शन ही विकरण है, अर्थात् धातु और प्रत्यय की बीच में शून्य/कुछ न होना।)

३. जुहोत्यादि - जुहोति, जहाति, बिभेति। 
(इनमें "श्लु" विकरण है, यह भी लोप/अदर्शन ही बताता है। किन्तु इसमें विशेषता ऐसी है कि धातु में द्वित्व (double) हो जाता है और अन्य अभ्यासकार्य (बादमें सीखेंगे) के नियम लग जायेंगे। 
हु+श्लु+ति, हु×2 = जुहो+ति = जुहोति। 
हा+श्लु+ति, हा×2 = जहा+ति = जहाति।)

४. दिवादि - दीव्यति, नृत्यति, विध्यति। 
(इसमें "श्यन्"/य विकरण है। सब में य लगेगा।
नृत्+य+ति = नृत्यति।
विध्+य+ति = विध्यति।)

५. स्वादि = सुनोति, आप्नोति, शृणोति।
(इसमें "श्नु" विकरण है। नु बचेगा। उसीको एक नियम से "नो" हो जायेगा। सु+नो+ति = सुनोति। 
आप्+नो+ति = आप्नोति।)

६.तुदादि = तुदति, नुदति। 
(इसमें "अ" (श) विकरण है। 
तुद्+अ+ति = तुदति
नुद्+अ+ति = नुदति। 
शप् में भी "अ" ही बचता है, लेकिन उसमें और इसमें भेद है, वो ये कि "प्" अनुबन्ध होने से कई सारे गुण जैसे कार्य होते हैं, जो यहाँ नहीं होते।)

७. रुधादि = रुणद्धि, भिनत्ति, छिनत्ति 
(इनमें "श्नम्" विकरण है, न बचता है। "म्" अनुबन्ध होने से, यह धातु के अन्दर घुसके अन्तिम स्वर के बाद बैठ जाता है।
रुध्+ति = रु+'न'+ध् + ति = रुणद्धि। 
भिद्+ति = भि+'न'+द् + ति = भिनत्ति। 
छिद्+ति = छि+'न'+द् = छिनत्ति।)

८. तनादि = तनोति, करोति।
(इनमें "उ"विकरण है। उसे ओ हो जायेगा।
तन्+ओ+ति = तनोति। 
कृ+ओ+ति = करोति।)

९. क्र्यादि = क्रीणाति, जानाति, प्रीणाति
(इनमें "श्ना" विकरण है। उसमें "ना" बचता है। 
क्री+ना+ति = क्रीणाति
जा+ना+ति = जानाति)

१०. चुरादि = चोरयति, स्पृहयति, गणयति। 
(इनमें धातु से णिच् लगता है, जिसमें "इ" बचता है, जो कुछ नियमों से "अय्" बन जाता है। 
चुर्+अय्+अति = चोरयति।
स्पृह्+अय्+अति = स्पृहयति।
गण्+अय्+अति = गणयति।)

धातुगण अध्ययन समाप्त !

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