कुछ रुचिकर लेख (ईश्वर का स्वरूप, छंद)

श्री हरि: 🙏
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            योगदर्शन में ईश्वर का स्वरूप  

योगसूत्र = क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्ट:
                   पुरुषविशेष ईश्वरः ।। 24।।

पुरुष प्रकृति साहचर्यवश क्लेश, कर्म
      कर्म-फल, वासना से युक्त दिखलाता है।

किन्तु क्लेश, कर्म, कर्म-फल, वासनाविमुक्त
        पुरुष विशेष वही ईश्वर कहाता है।

तीनों काल में न दु:ख दोष का है लेश जहाँ
       सर्वशक्तिमान् एकरूप माना जाता है।

उसके बराबर या उससे बड़ा न कोई
        इच्छामात्र से ही मुक्ति-फल का प्रदाता है।।

सूत्रार्थ :   क्लेश, कर्म, कर्मों के फल और और वासनाओं से असम्बद्ध, अन्य पुरुषों से विशिष्ट (उत्कृष्ट) पुरुषोत्तम ईश्वर है।

     - डॉ देवीसहाय पाण्डेय
       (पातंजलयोगदर्शनम् से)
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*छन्दांसि छादनात्।।* 

                वेदों को छन्द क्यों कहते हैं?

अथ छन्दांसि कस्मात्? छादनात् । यैरात्मानमाच्छादयन्देवा मृत्योर्बिभ्यत: तच्छन्दसां छन्दस्त्वम्--इति विज्ञायते।

मन्त्र (वेद) छन्दोमय है, अतः छन्द की व्युत्पत्ति देते हैं--- छादनात् -- छादन अर्थात् ढाँकना, छादन करने से छन्द कहलाए। मृत्यु से डरते हुए देवताओं ने अपने को (खुद को) इन छन्दो से ढक लिया था अतः इनका नाम छन्द पडा।

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