संस्कृत भाषा मे होने वाली सामान्य गलतियां

कुछ प्रचलित प्रयोग जैसे:-

"कुर्वन्नस्मि पठन्नासीत् "जैसे प्रयोग निरर्थक हैं। 

सभी कृपया पूरा लेख बाँचना। 

धातु के दो अर्थ हैं = फल और व्यापार। फल का अर्थ क्रिया जहाँ पर समाप्ति को प्राप्त करे और व्यापार शरीर के प्रयत्न को कहते हैं, पुरुष फल की सिद्धि के लिये जो भी प्रयत्न करे वो व्यापार है।

अब धातु का तिङ् के साथ प्रयोग करो, तो व्यापार का ही बोध होता है। और व्यापार तो कृतिसाध्य होता है। contiual होता है।

उदाहरण से समझ पडेगा = ये देवदत्त को पकोड़े तलने है। अब बेसन घोलोगे, चूला जलाओगे, आलू काटोगे दुनिया भर की रामायण करोगे एक फल की सिद्धि के लिए। ये पूरा process ही व्यापार है। तो व्यापार जो है वो साध्य यानि के continual है स्वरूपतः। अतः व्यापार तो धातु में निहित है, लकार आने पे व्यापार अपने आप ही व्यक्त हो जाता है। continuity तो व्यापार में है ही। 

देखो, देवदत्तः पचति = देवदत्त पकाता है। (अब यह वाक्य सुनने से देवदत्त का पकाना के काम हो गया? क्या पकाने का फल, सिद्ध हो गया? क्या इस वाक्य से ऐसी कोई प्रतीति होती है? नहीं ना।)

"पका रहा है" यह भी साध्यावस्था में है। और "पकता है" भी साध्यावस्था में ही है। तो हिन्दी में अलग अलग प्रयोग क्यों?

बस फर्क सामान्य और विशेष अवस्था का है। जैसे "पेड़ फलता है", "सूर्य उगता है" यह एक सामान्योक्ति है। अतः हम "ता है" का प्रयोग करते हैं। यह देशकालनिरपेक्ष है। लेकिन जब कहा जाए कि "देवदत्त पका रहा है" यहाँ एक विशेषोक्ति को बताना है। कि इस प्रकृत स्थान पे, इस प्रकृत काल में देवदत्त पका रहा है। येही अर्थ "रहा है" बोलेगा। यह देशकाल सापेक्ष है।

लेकिन continual तो दोनों ही हैं। पकाता है में भी पकाने का व्यापार पूरा नहीं हुआ और पका रहा है में भी नहीं हुआ। 

यह confusion अंग्रेजी के simple और continuous भेद से होता है। अंग्रेजी वैयाकरण क्रिया के स्वरूप को समझ न पाये होंगे इसलिए गड़बड़ा गए। कोई बात नहीं। लेकिन जब हिन्दी वैयाकरणों ने हिन्दी व्याकरण की किताबें लिखीं, तो अपूर्ण क्रिया और पूर्ण क्रिया जैसे दो भेद कर दिए। ये दोनों गड़बड़ा गए। 

अब व्याकरण अपठित संस्कृत वालों ने हिन्दी का शब्दशः अनुवाद करने के दुराग्रह से लोगों को कुर्वन्नस्मि कुर्वती अस्मि जैसे प्रयोग सिखाने शुरु कर दिए। सामान्य और विशेष अवस्था के हिसाब से इदानीम् और प्रायशः जैसे शब्दों का प्रयोग हो सकता है और प्रसङ्गानुसार दिमाग भी अर्थ लगा ही लेगा। 

देवदत्तः पचन् अस्ति का शाब्द अर्थ =
वर्त्तमानकालिकपचनव्यापाराश्रयो देवदत्तः अस्ति (वर्त्तमानकाल में जो पचनक्रिया है उसका आश्रय देवदत्त, है।) अङ्ग्रेजी = The cooking Devdatta exists.
 "पचन्" ये gerund है, यानि के present participle। ये कर्तृविशेषण है नाकि व्यापारबोधक।

 देवदत्तः पचति = "देवदत्तकर्तृकवर्त्तमानकालिकपचनक्रिया" ऐसे बोध होगा जोकि पचन्नस्ति  
से न होगा। 

वर्त्तमानकालिकपचनाश्रय देवदत्त है, ऐसे कहने से अच्छा है देवदत्त पकाता है, येही कहदो।।


अब कृपया ऐसे निरर्थक प्रयोग करना बन्द करें।  

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