अनुस्वार उचित का प्रयोग (Usage of Anuswara)

श्री हरि:
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अनुस्वार उच्चारित करते समय कई जगह यह "म" जैसा व कई जगह "न" जैसा सुनाई पडता है इसका सही उच्चारण क्या है ? 

अनुस्वार का प्रयोग

अनुस्वार (ं) का प्रयोग पंचम वर्णों (ङ, ञ, ण, न, म ये पंचाक्षर कहलाए जाते हैं) के स्थान पर किया जाता है।

अनुस्वार यदि शब्द के मध्य में हो तो इसका उच्चारण इससे अगले वर्ण की छाया लिए रहता है व उसी के अनुसार इसका उच्चारण होता है। 
उदाहरण -
गंगा - यहां अनुस्वार से अगला वर्ण "ग" है व "ग" कवर्ग में है अत: यहां अनुस्वार का उच्चारण कवर्ग के अन्तिम नासिका में बोले जानेवाले "ङ" के सदृश होगा जैसे:-

गङ्गा =      गंगा
चञ्चल =   चंचल
डण्डा =    डंडा
गन्दा =     गंदा
कम्पन =    कंपन

अनुस्वार के कुछ अन्य नियम

(१) यदि पंचम अक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए तो पंचम अक्षर अनुस्वार (ं) के रूप में परिवर्तित नहीं होगा जैसे -
वाड्.मय, अन्य, उन्मुख आदि सभी शब्द वांमय, अंय, उंमुख के रुप में नहीं लिखे जा सकते।

(२) पंचम वर्ण यदि द्वित्व रूप में दोबारा आए तो पंचम वर्ण अनुस्वार (ं) के रूप में परिवर्तित नहीं होगा जैसे -
प्रसन्न, अन्न, सम्मेलन आदि को प्रसंन, अंन, संमेलन इस तरह नहीं लिखा जाता।

अनुस्वार यदि शब्द के अन्त में हो तो बहुत स्थानों पर इसकी "म" जैसी ध्वनि सुनाई पडती है । वस्तुत अनुस्वार एक नासिक्य अर्थात् नासिका में बोला जाने वाला वर्ण है जैसा कि महर्षि पाणिनि ने स्वरचित "वर्णोच्चारण शिक्षा" में कहा भी है "अनुस्वारयमा नासिक्या:" अर्थात्
अनुस्वार व यम नासिका स्थान से बोले जाते हैं। अत: इसे नासिका से बोला जाना ही शुद्ध है । यह अलग बात है कि शब्द के अन्त में कई जगह यह "म" जैसा सुनाई पडता है कई जगह किसी अन्य वर्ण जैसा पर वास्तविकता यही है कि इसका उच्चारण नासिक्य है अत: इसे नासिका से ही बोलना चाहिए।

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अनुस्वार का उच्चारण कई जगह "म" जैसा व कई जगह "न" जैसा सुनाई पडता है इसका सही उच्चारण क्या है ? 

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अनुस्वार (ं) का प्रयोग पंचम वर्णों (ङ, ञ, ण, न, म ये पंचाक्षर कहलाए जाते हैं) के स्थान पर किया जाता है।

अनुस्वार यदि शब्द के मध्य में हो तो इसका उच्चारण इससे अगले वर्ण की छाया लिए रहता है व उसी के अनुसार इसका उच्चारण होता है। 
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गंगा - यहां अनुस्वार से अगला वर्ण "ग" है व "ग" कवर्ग में है अत: यहां अनुस्वार का उच्चारण कवर्ग के अन्तिम नासिका में बोले जानेवाले "ङ" के सदृश होगा जैसे:-

गङ्गा =      गंगा
चञ्चल =   चंचल
डण्डा =    डंडा
गन्दा =     गंदा
कम्पन =    कंपन

अनुस्वार के कुछ अन्य नियम

(१) यदि पंचम अक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए तो पंचम अक्षर अनुस्वार (ं) के रूप में परिवर्तित नहीं होगा जैसे -
वाड्.मय, अन्य, उन्मुख आदि सभी शब्द वांमय, अंय, उंमुख के रुप में नहीं लिखे जा सकते।

(२) पंचम वर्ण यदि द्वित्व रूप में दोबारा आए तो पंचम वर्ण अनुस्वार (ं) के रूप में परिवर्तित नहीं होगा जैसे -
प्रसन्न, अन्न, सम्मेलन आदि को प्रसंन, अंन, संमेलन इस तरह नहीं लिखा जाता।

अनुस्वार यदि शब्द के अन्त में हो तो बहुत स्थानों पर इसकी "म" जैसी ध्वनि सुनाई पडती है । वस्तुत अनुस्वार एक नासिक्य अर्थात् नासिका में बोला जाने वाला वर्ण है जैसा कि महर्षि पाणिनि ने स्वरचित "वर्णोच्चारण शिक्षा" में कहा भी है "अनुस्वारयमा नासिक्या:" अर्थात्
अनुस्वार व यम नासिका स्थान से बोले जाते हैं। अत: इसे नासिका से बोला जाना ही शुद्ध है । यह अलग बात है कि शब्द के अन्त में कई जगह यह "म" जैसा सुनाई पडता है कई जगह किसी अन्य वर्ण जैसा पर वास्तविकता यही है कि इसका उच्चारण नासिक्य है अत: इसे नासिका से ही बोलना चाहिए।

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