अभिविधि और मर्यादा संस्कृत
आङ् (जिसमें) आ बचता है उसके अनेक अर्थों में से दो प्रायः उपयोग में आते हैं।
एक अभिविधि और दूसरा मर्यादा। अभिविधि यानि कार्त्स्न्य या सकलता (entirety)।
आ लगाके हमेशा आगे पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग करने से तबतक टाइप अर्थ प्रकट होता है।
आ स्वर्गात् बलेः राज्यम्। (स्वर्ग तक बलि का राज्य है)। इसमें सवाल आता है कि स्वर्गतक कहने से स्वर्ग पे भी राज्य है या स्वर्ग से पहले तक। यहाँ अभिविधि अर्थ मानने पर स्वर्ग को बिना छोड़े राज्य है ऐसा अर्थ होगा। आ स्वर्गात् (स्वर्गम् अपरित्यज्य) बलेः राज्यम्।
दूसरा अभिविधि का उदाहरण।
आ लोकाद् रघोः यशः (लोक तक यानि पूरे लोक में रघु का यश है)।।
मर्यादा यानि सीमा। तब तक।
आ मुक्तेः संसारः। (मुक्ति तक ही संसार है) यहाँ सब जानते हैं कि मुक्ति के बाद संसार (जन्म-मरण) नहीं बचता । मुक्ति तक यानि मुक्ति इसमें नहीं आती। मुक्ति के बिना मुक्ति तक।
आ समुद्राद् भारतम् (समुद्रतक भारत है)। यहाँ भी भारत की सीमा बताई जा रही। समुद्र तक भारत की सीमा है।
इनको अब स्वयम् वाक्यों में प्रयोग करिए। नए उदाहरण सोचिए।
तेन सह अभिधि। तेन विना मर्यादा।।
Join us on:- TELEGRAM
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें